श्रीकृष्ण के सुविचार भगवन श्री कृष्ण ने कहीं एक अद्भुत बात

श्रीकृष्ण के सुविचार भगवन श्री कृष्ण ने कहीं एक अद्भुत बात

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1-
एक बार सूर्य पुत्र कर्ण श्रीकृष्ण जी के पास जाते हैं और कहते हैं कि हे प्रभु मेरा क्या दोष है जिसके कारण जब मैं पैदा हुआ तो मेरी माता ने मुझे त्याग दिया जिसके कारण मैं क्षत्रिय नहीं था इसलिए गुरु द्रोणाचार्य ने मुझे कोई शिक्षा नहीं दी।और फिर भगवान परशुराम ने मुझे शिक्षा दी, फिर उन्होंने स्वयं मुझे एक श्राप दिया और मेरी अपनी माँ ने मुझे बेटा जब कहा तब मेरे हाथों भाइयों की जान खतरे में पड़ गई थी। यह सुनकर श्रीकृष्ण जी ने अपना उदाहरण दिया और कहा, सूर्य पुत्र कर्ण, जब मैं स्वयं पैदा हुआ था तब मैं जेल में था और मुझे वर्षों तक अपनी असली माँ से दूर रहना पड़ा और मुझे इतने सारे राक्षसों का सामना करना पड़ा और इसके अलावा मैं जिस स्त्री से प्रेम करता था, उसे प्राप्त नहीं कर सका और मैंने कौरवों और पांडवों को मरते हुए भी देखा, मेरी अनुमति के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता, लेकिन अपने होते हुए भी मैं इस विनाशकारी युद्ध को नहीं रोक सका और न ही किसी का भाग्य बदल सका। मनुष्य अपने पूर्व जन्म में जो भी कर्म करेगा उसे इस संसार में भोगना ही पड़ेगा। निष्कर्ष- किसी भी व्यक्ति का जीवन शूखद और सरल नहीं हैं संघर्षो से भरा हुआ हैं आपने पिछले जन्म में जो भी कर्म किये हैं उनका फल आपको इस संसार में भुगतना पड़ेगा।

2-जब श्री कृष्ण जी 14 वर्षों के बाद अपनी माँ को कंश के कारवाश से छुड़ाते है तब उनकी माँ कहती है की पुत्र तुम तो स्वयं भगवान हो फिर भी मुझे तुम 14 वर्षों के बाद क्यों छुड़ाने आये पहले भी तो छुड़ा सकते थे हा माँ में आपको पहले भी छुड़ा सकता था परन्तु आपके पिछले कर्मों का कुछ हिसाब बाकी रह गया था इसलिए में आप को वर्षो के बाद छुड़ाने आया हु इतने में देवकी मईया बोली पुत्र ऐसा कौन सा पाप मेने अपने पूर्व जन्म में किया था जिसकी भरपाई स्वयं भगवान को करनी पड़ी | और श्री कृष्ण जी बोले प्रिय माता जी आप को पूर्व जन्म का याद नहीं होगा परन्तु पूर्व जन्म में आपका नाम कैकेयी था और आपने ने मेरे राम अवतार में आपने ने मेरे पिता राजा दशरथ से मेरे लिए 14 वर्षों का वनवश माँगा था जिसके कारण में अपनी माँ कौशल्या से 14 वर्षों तक दूर रहा था और जब में अपनी माँ कौशल्या से वन जाने के आज्ञा माँगने गया था माँ कौशल्या ने मुझे वन जाने से रोका था और मुझे बार-बार मना कर रही थी अन्ततः मुझे जाने की आज्ञा तो दे परन्तु मुझसे एक वचन माँगा था की हे राम इस जन्म में तुम मेरी ममता को 14 वर्षों के सुनी कर के जा रहे हो तो वचन दो की अगले जन्म में तुम इन 14 वर्षों की दूरियों की भारपाई करोंगे| और माता देवकी बोलीं अच्छा तो यशोदा पूर्व जन्म में तुम्हारी माँ कौशल्या थी और श्री कृष्ण जी हस्ते हुए बोले जी देवकी माँ अपने सही समझा| और बस इसीलिए माँ यशोदा  के पास 14 वर्षों तक रहने के बाद आपके पास आपको छुड़ाने आया हु| निष्कर्ष – जब स्वयं भगवान की माता नहीं बच सकी अपनी बुरे कर्मों से तो आप किस खेत की मूली हो जनाब इसलिए बुरे कर्म छोड़ो और भगवान की भक्ति में अपना जीवन सुधर लो भगवान श्री कृष्ण तुम्हें तुम्हारे बुरे कर्मों की याद दिलायेंगे। 

3-एक बार अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से पूछा की हे माधव ,सूखी जीवन का क्या अर्थ हैं श्री कृष्ण जी अर्जुन को पतंग उड़ाने ले जाते हैं और अर्जुन से कहते है की तुम इस पतंग को ध्यान से उड़ते हुए देखना अर्जुन जो बोले जैसे आप की आज्ञा माधव | अर्जुन उस पतंग को ध्यान से देखता हैं और कहते हैं माधव इस धागे डोर के कारण पतंग ज्यादा दूर नहीं जा रहीं है क्यों ना इस धागे को काट दिया जाए जिससे यह पतंग और ऊपर जा सकें| श्री कृष्ण जी अर्जुन की बात सुन कर धागे की डोर काट देते हैं|और अर्जुन कहते की माधव ये पतंग तो धागे की डोर से आज़ाद हो गई फिर भी नीचे क्यों गिर रहीं हैं और इसी बात को समझाते हुए श्री कृष्ण जी कहते है | हे अर्जुन जिस तरह यह पतंग धागे की डोर काटने से ऊपर नहीं गई लेकिन निचे जरूर गिरने लगी क्यूकि इस पतंग की डोर इसको उड़ने में साहयता प्रदान कर रहीं थी जिस से यह पंतग अभी तक उड़ रही थी और धागे की डोर का सात छूटने पर गिर गई इसी प्रकार हमारी जीवन की डोर भी होती हैं जैसे हमारे माता-पिता ,भाई-बहन ,पत्नी,दोस्ती-यारी ,परिवार और रिश्ते-नाते जो हमें आगे बढ़ने और जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में साहयता प्रदान करती है यह भी एक डोर की भाती ही काम करती हैं |अगर डोर टूटी तो मनुष्य आगे नहीं दुर्गति की और जाता हैं| निष्कर्ष – हमें कभी यह नहीं सोंचना चाहिए की हमे अपने कभी आगे बढ़ने या तरक्की करने से रोखते हैं |

4-अगर आपको पता नहीं है तो यह आर्टिकल आपके लिए है। आपलोगों में से कई लोग ऐसे हैं जो किसी न किसी सत्संग या में जरूर गए होंगे। मैं इस जानकारी में बताना चाहता हूँ कि यदि कोई आदमी मांस-मटन या अन्य प्रकार का कोई भी मांस खाता है, तो आप एक कथा वाचक के अत्यधिक समीप न बैठें, क्योंकि आपको नहीं पता। तो सुनो, एक बार एक आदमी किसी धार्मिक कथा के प्रवचन सुनने गया और वह आदमी कथा वाचक के सामने बैठ गया और पण्डित जी कई प्रकार की धार्मिक ज्ञान की बातें लोगों के सामने प्रस्तुत करते हैं, और अचानकपंडित जी के मन में पता नहीं क्या विचार आते हैं। पंडित जी एक आदमी से बोलते हैं जो गले में लाल रंग का कपड़ा और बढ़ी-बढ़ी दाढ़ी रखे हुए था, जो दिखावे से लग रहा मानो कोई ज्ञानी पुरुष हों। उस आदमी ने कभी भी यह नहीं सोचा होगा कि ‘स्वामी जी मुझसे कुछ पूछ बैठेंगे’। स्वामी जी उस आदमी को मीठी-मीठी बातों में उलझा कर पूछने लगते हैं कि ‘साहब, आपने कभी अंडा खाया है’। वो आदमी अपनी गर्दन हिला कर बोलता है, ‘हाँ, पंडित जी’। और स्वामी जी फिर से पूछते हैं, ‘और मुर्गा खाया है?’। फिर से ‘हां’ में ज़वाब देता है। और पंडित जी फिर से पूछते हैं, ‘और आपने बकरा खाया है?’।आदमी शर्माते हुए बोलता है, ‘जी, पंडित जी, खाया हैं’। और आचार्य जी फिर बोल पढ़े की, ‘फिर तो आपने आदमी का मांस भी खाया होगा’। वो आदमी आचार्य जी का मुँह देखता और बोलता है कि ‘नहीं, पंडित जी, आप यह क्या बोल रहे, आप में आदमी क्यूँ खाने लगा’। और सामने से आचार्य जी बोलते हैं, ‘भाई, जब आप अंडा खाते हो, मुर्गी खाते हो, बकरा खाते हो, तो आदमी क्यों नहीं खाते, वो भी खाया करो। जब तुम कई प्रकार के माशूम जानवरों को मार के उनका सेवन करते हो, तो तुम्हारा हक़ है खाना करो।’इतना सुनते ही आदमी शर्म से पानी-पानी हो गया और जितने भी लोग वहाँ गए जो इस प्रकार का मांस-मटन खाते थे। पंडित जी ने सबकी आँखें खोलने के लिए जवाब दिया, कि ‘मैंने आप लोगों को शर्मिंदा होने के लिए ये सब नहीं बोला, मैंने तो यह समझाने के लिए इन भाई साहब से पूछा कि अगर आप सभी में से कोई से सीधे सवाल पूछता, तो कोई ज़वाब नहीं देता, इसलिए मैंने भाई साहब को निशाने पर लिया। और हा, आप सभी को यह जानकारी देना चाहता हूँ, कि इस तरह के मांस-मटन मत खाओ, क्यूंकि आपको अगर कोई मार के खाये, तो कैसा लगेगा। और इन सब बातों का जवाब आप लोगों को ऊपर वाले भगवान को कैसे दोगे। इसलिए मैं कहता हूँ, कि आप लोग इस प्रकार के सामग्री का सेवन बंद कर दे। निष्कर्ष- भगवान की दुनियां में, अच्छे काम करो। जैसा आपकरोगे, वैसा ही फल पाओगे। इसलिए कहा जाता है कि नैकी करो और आगे बढ़ो। लोगों का यही दस्तूर होना चाहिए।किसी सज्जन व्यक्ति की बातें कड़वी लग सकती हैं।

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